Monday 25 October 2010

अहम् की तुष्टि

इधर कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि हम सब कुछ बदलना चाह रहे हैं ...कोई साथ है या नहीं इसकी परवाह किये बगैर ये एक तरह से तो अच्छा है पर हम केवल इसके सिद्दांत पर ही बात करते हैं, ये यथार्थ में कैसे होगा ये तय करना जरुरी है जब हम किसी वाद पर बात करते हैं ,तो जानते हैं कि ये भी हल नहीं रास्ता है तो हल क्या है, शायद खुद की विवेचना जिससे हम गुरेज़ करते हैं, हल हम खुद हैं इसलिए हमें पता होता है कि क्या होना चाहिए, फिर वो होता क्यूँ नहीं? खुद उसका पालन हम व्यक्ति ना होकर नागरिक है,इसलिए कि हम संविधान के अधीन है, तो समझना होगा वरना हमारे बदलने से कुछ होगा नहीं सिवाय अहम् की तुष्टि

4 comments:

  1. वाह प्‍यारे......बहुत ख़ूब.....मेरा स्‍नेहाशीष।.

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  2. Kuchh kuchh samaz me aa gaya par sanvidhan vali baat muze samaz me nahi aai sirji.

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  3. poori tarah tho samajh nahi paayi lekin itna sach hai... Ki saare raston ki shuruaat bhi hum hain and anth bhi... hal hum hi hain ... ye tho keval ek tareeka hai mann ko shaanth karne ka, jabtak hum anth tak nahi pahunchte.

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