Sunday 21 November 2010

सत्ता-शक्ति-धन बनाम धर्म-जाति-धन...




बचपन से ही हमें ये बताया जाता रहा है कि हम इसे पूजें...ये हमारी जाति का है...ये पैसे वाले हैं...साथ ही ये भी बताया जाता कि झूठ चोरी बेईमानी ये पाप है...तो इसका पालन हम अपने धर्म-जाति-धन के आधार पर करते रहे...ये करते-करते हमनें धर्म को सत्ता में, जाति को शक्ति में और धन को आधार रुप में परिवर्तित कर दिया या हो गया...नतीजा...हम देश के लिये नही अपितु अपने धर्म-जाति-धन के लिये जीने लगे...अब मुझे कोई समस्या नही दिखाई देती...वो बातें बचपन से जो बताई गईं हैं उसका आधार बदल कर देश कर दें...है ना आसान...तब तो इसे सब समझते होंगे...मैंने तो सिर्फ लिख दिया...तो ये अटका कहाँ है...चुनाव होते हैं...वहाँ तो कोई दबाव नही...तो फिर...वो समस्या कैसे हैं...जो बलात्कार करते हैं रुप चाहे जो हो...राजनैतिक हो...सामाजिक हो...आर्थिक हो...मानसिक हो...शारीरिक हो...सब एक जैसे हैं... क्यूँकि हम खुद चाहते हैं कि वो हो...जाने-अनजाने...क्यूँकि हमारे पास कोई दिशा नही है...नेता बन के हम क्या करते हैं...डाक्टर बन के... ईन्जियर,पुलिस, समाजसेवक, कलाकार, हर कोई... सब, सिर्फ पैसा कमा रहे है किसके लिये अपने लिये...तो दिशा कहाँ है, खुद, मतलब ब्रम्ह... अब हमने खुद को ब्रम्ह मानलिया तो दूसरा कहाँ जायेगा...तो धन खुद के लिये कमाना दिशा नही हो सकता...तो देश के लिये कमाया जा सकता है... फिर भी वो खुद का ही होगा...तो हम भी गर्व कर सकेंगे कि ये काम...ये विचार...ये धन इस देश का है...तो जीने की दिशा देश हो तो क्या बुरा है...सबकुछ खुद का ही तो होगा...अरे, करना क्या है कितनी बार देश का नाम जपना पडेगा बताओ और काम करने दो...जाने दें मुझसे गलती हो गई...ये समझाया नही जा सकता...ये सिर्फ जिया जा सकता है...तो बच्चों को कैसे समझायें...

1 comment:

  1. मुक्तकंठ
    (हम जो कह नही पाते) सबसे पहले तो हमरी तरफ़ से बध्धईया ले लीजिये कि एक और सज्जन आग गये हैं जो सदियों से जनता नहीं समझ पा रही थी उसे समझाने....भाई इस धरा को हमने ही बांटा है..सीमाएं बनाई वो भी हमने...पर ये बात सबको मालूम है कि हम यहां मरने आये हैं आखिर एक न एक दिन सबको मरना ही है...अब सोचिये अपना दिल्ली का लाल किला जिसने बनवाया था उसने सपने में भी कभी सोचा होगा कि एक दिन उस पर कोई सरदार जी तिरंगा झंडा फहरायेगा...कहां हैं वो लोग जिन्होंने वो उस कि़ले को बनवाया.....अरे मैं भी क्या क्या समझाने लग गया इस पर तो कभी एक पोस्ट लिखी जाएगी.......सच्ची बात जीवन को गम्भीरता से लेने की आखिर ज़रूरत ही क्या है जानते हुए कि सबकुछ नश्वर है.......आपका ब्लॉग आपकी फोटो, और आपका स्वागत है मित्र......साथी इस वर्ड वेरिफ़िकेशन को हटा दे बड़ा बेदर्द है।

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