Sunday, 12 January 2014

तो हमें वो क्या सिखा रहा है...""देखो"" !

दिल्ली में...पहली बार "साफ़ नियत" की चेतावनी, की सरकारी सूचना, सामाजिक रुप से घोषित की गई...अब हमें बदलना होगा या हम उन्हे फ़िर बदल देंगे ....?साफ़ नियत...यक्ष-प्रश्न...कल क्रान्ति लगेगी ऐसा माहौल बनाया गया है और लोग उसके हिट और फ़्लाप का इंतज़ार कर रहे हैं...

तो हमें वो क्या सिखा रहा है...""देखो"" !
हो सकता है, उनकी नियत साफ़ ना हो या वो आदमी भी साफ़ ना हो...और हो सकता है वो ड्रामा कर रहा हो...पर ये ड्रामा वाकई पूरा देश देख रहा है...जो क्षेत्रियता...घर्म और जाति से मुक्त है...और हम-सब इसे देख रहे हैं...जब-तक इसे देखते रहेंगे तब-तक वो ड्रामा चलता रहेगा...और जिस दिन हम देखना बंद कर देंगे वो भी किसी पोलिटिकल-पार्टी की तरह हो जायेगा...तो हमें वो क्या सिखा रहा...हमसे कह क्या रहा है...""देखो"" ...इसीलिये, वो देखने पर ज़ोर देता है...वो कह रहा है, हमसे, कि हमने अपने देखने की परिधि, शायद, सीमित कर ली है...तो हमे, अपने उस, सीमित -परिधि से भी, बाहर निकलना होगा...इसीलिये, हम कहते है....वो अपने राजनैतिक फ़ायदे के लिये, ड्रामे कर रहा है..सड़क पर..टेबुल पर..छत पर...ये ड्रामा है, ऐसे काम होता है क्या?...और वो कह रहे हैं..जनता का काम करने के लिये, देखिये चाहारदीवारी से बाहर तो आ गये....पर अब जनता क्या कर रही है?..... वही कर रही है, कि जिससे वो फ़िर अंदर चले जायें...इसीलिये वो कह रहा है, कि ’हम’ देखें, कि वो काम, कैसे कर सकें...इसीलिये, वो देखने पर ज़ोर देता है...किसी ज़माने में किसी स्तानिस्लावस्की को किसी ब्रेख्त नें कहा की भाई आपका नाटक देख कर ये लगता है कि दर्शक को आपने अफ़ीम खिला दिया है...और दर्शक भावना में मस्त होकर जाता है...फ़िर, ब्रेख्त ने कहा कि ड्रामा ऐसा होना चाहिये, कि ड्रामेबाज़ ही कह सके...कि देखो, मैं, दिखा रहा था...मतलब, हमारे देश में बहुत सालों से  अलग-अलग तरह की पार्टीयाँ हमें भावना में मस्त कर रही है...हम उन पार्टीयों के साथ हैं,पर उन्हे देख नही रहे और मस्त हैं....मस्ती का आधार क्या है... क्षत्रियता...धर्म..जाति...आधुनिकता और हम मस्त हैं बरसों से... तो वो आदमी या दल या पार्टी हमे अभी सिर्फ़ दिखा रहा है...हमें देखना सिखा रहा है...क्या देखना सिखा रहा है?..वो कह रहा है मस्त रहो, पर, देखो...अगर देखोगे नही तो सब पहले जैसा हो जायेगा....इसीलिये वो कह रहा है देखो और अपने अधिकार लो....पर उसके लिये अपने कर्तव्य पूरे करने होंगे...अगर हम इस देखने से आगे नही बढे़ तो वो आदमी भी नही बढ़ पायेगा...वो आदमी, के बढ़ने की चाभी हमारे हाथ है...और वो कह रहा है, जनता, चाभी भी अपने पास रखो...अब............क्रमश

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