Sunday 28 August 2011
जेपी चले गये और हम सत्ताधारी हो गये...
कल लोकसभा और राज्यसभा में जो भी हुआ उस पर बहस नही है।क्यूँकि वहाँ ऐसा कुछ नही हुआ जिसे नई शुरुआत कह सकूँ।पर एक चीज़ स्पष्ट हो गई कि आन्दोलन भावनाओं के आधार पर नही लड़ सकते।क्यूँकि तब,जवाब भी हमें भावनाओं के आधार पर ही मिलेगा।तो हमें मिला क्या सिर्फ़ अन्ना का जीवन और इसका श्रेय भी वो ही ले गये।हमसे ज्यादा अन्ना की चिन्ता उन्हे है कल उन्होंने ये भी सिद्ध किया।गांधी देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे और जेपी अपने ही देशवासियों से लड़ रहे थे,वहाँ दुशमन कोई नही था।जेपी आन्दोलन "सत्ता परिवर्तन" की लडाई थी।क्यूँके हासिल क्या हुआ "सत्ता परिवर्तन"। कहीं भी देश में चौंतीस साल बाद सम्पूर्ण-क्रान्ति या आमूल-चूल परिवर्तन का कोई निशान दिखता है?अगर ऐसा होता तो आज ये क्यूँ होता।हम जेपी पर उँगली नही उठा रहे वो तो निरविकार थे।हमें बदलना था, स्वयं को, पर हमने ये तो नही किया पर सत्ता जरूर बदल गई।जेपी चले गये और हम सत्ताधारी हो गये।जेपी आन्दोलन आसान था क्यूँकि एक को हटाना था।पर जहाँ किसी को हटाना ना हो सिर्फ़ नियम बदलने हो तो पहले खुद को बदलना लाज़िमी है,बाह्य-आवरण नही,स्व को, वरना कोई आन्दोलन खडा ही नही हो सकता,वो सिर्फ़ भीड होगी।इसीलिये आन्दोलन की सामाजिक,राजनैतिक और सांस्कृतिक अवधारणा स्पष्ट नही होगी तो कोई भी आन्दोलन अपना राष्ट्रीय स्वरूप नही लेगा।हम उसे सिर्फ़ भीड़ ही मानते रहेंगे।
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