Wednesday 7 December 2011

उपरवाले...








उपरवाले...
उपरवाले, आप कर क्या रहे हो...अब आप विचार...आस्था...विश्वास नही हो....क्यूँ....अब आप भव्य मूर्ति हो...भव्य मंदिर हो...भव्यता ही आपका रुप है...आपके रुप भी अनेक है...वो आपने नही दिये हैं...वो हमने इजाद किया है।हमने "आपको" बड़ा बनाया,अपने से बड़ा, और बड़ा बनाते रहेंगे।इसका श्रेय भी हम अपने माथे लेते रहेंगे। ’हम ना होंगे तो आप ना होगे’ के सिद्धान्त पर, हम आपको सिद्ध करते हैं।और ’वो’ सिद्धान्त बनता है।तो, हर कोई, सिद्धान्त है।"आपने" ही कहा--आप कण-कण में हो...तो हर कण "आप" हो।"आप" कोइ बुरी भावना तो हो नही। पर आपके प्रयोग से लगभग सबको आपत्ति कभी ना कभी हो ही जाती है।हाँ, "आप" वो ना कर सके, जिसके लिये "आप" हैं,कि हम आदमी बन सकें।वो शायेद इसलिये भी कि हमनें आदमी की ही "परिभाषा" बदल दी।अपने क्षेत्र और अपने परिवेश के अनुसार आपको गढ़ लिया। किसी को कोइ समस्या नहीं थी ऐसा करने में। क्यूँकि, समूह की दूरीयाँ बहुत थीं शायद।यही दूरीयाँ जब कम होने लगीं तो समस्या बढ़ने लगी।और जब से टी.वी. और नेट आया है समस्या अपने चरम पर पहुँच गई है।हर किसी को किसी दूसरे से परेशानी है।ये परेशानी सिर्फ़ "आपको" को लेकर ही नहीं, किसी चीज़ को भी लेकर हो रही है, मसलन, वो खर्राटें लेता है...वो कच्छा पहनता है...वो ज़ोर से बोलता है...वो बायाँ है...ये दाहिना।और ये सब "आप" के नाम पे होता है। अब तो "आप" राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर ही समस्या पैदा कर रहे हो। व्यक्तिगत जीवन में "आप" समस्या नही हो। "आप" हमारे शिकंजे में हो...और "आपका" निर्धारण हम करते हैं...।"आप" तो अब सेंसर के अधीन हो।इसलिये अब "आप" पर ज्यादा बोल या लिख भी नही सकता।...

1 comment:

  1. BADE ACHHE VICHARON KA JANAM HUA HAI AAPKE JEHAN ME..

    lapata hain aap kai dino se lapataganj se,
    kab darshan denge aap lapataganj me?.............:)

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