Monday 2 January 2012

जैसे उनके दिन बदले...वैसे इस गाँव के दिन बदले...



छोटी कहानी...बिना सिर-पैर की...
जैसे उनके दिन बदले...वैसे इस गाँव के दिन बदले... पूरा गावँ गरीब था...और सब उसके विरुद्ध थे...पर कुछ हो नही पाता था....लोगों की समझ में नही आ रहा था...क्या करें...कैसे ठीक होगा....और एक दिन गरीब हट गया...गाँव के लोगों ने मान लिया...और गाँव से गरीबी हट गई...अब गाँव नें महसूस किया कि भ्रष्टाचार का उपाय करना जरुरी है...अलग-अलग प्रकार से भ्रष्टाचार हटाने का प्रयोजन किया पर कुछ हुआ नही...एक दिन साधु बाबा आये और कहा ’एक’ होना पड़ेगा... लोगों ने एक दूसरे की तरफ देखा...और बाबा विलुप्त हो गये...और लोग एक होने का सोचने लगे...समय बीता और गाँव में मलंग बाबा आये...उन्होंने कहा ’इकट्ठा’ हो जाओ...लोग इकट्ठे हो गये...भ्रष्टाचार नही हटा...और बाबा मंथन करने चले गये...समय बीता और अब गाँव मे एक टेक्नो-बाबा आये...उन्होंने कहा आसान है...एक-एक करके भ्रष्टाचारीयों को निकालते हैं...और कुछ ही क्षणों में,गाँव से आधे से ज्यादा लोग, गाँव के, बाहर हो गये...बाबा नें आधे से कम बचे लोगों से पूछा...और तुम लोग लोग????...बाबा ने देखा सारे गाँववाले गाँव के बाहर खडे़ हैं..तो उन्होंने कहा--देखो अब गाँव में भ्रष्टाचार नही है...गाँववालों ने कहा पर हम बाहर हैं...बाबा ने कहा तुमलोगों ने उपाय पूछा था बस...और वो विलुप्त हो गये... पूरा गाँव धीरे-धीरे प्राकृत हरियाली से भरने लगा और गाँववाले एक-दूसरे को अभी भी देख रहे थे कि कौन पहले गाँव में जाये...सुना है अब वो जंगल कहलाने लगा है...और गाँववाले अभी भी गाँव में कब जायें ये सोच रहे हैं...

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